गोस्वामी
गोस्वामी एक भारतीय उपनाम हैं। आदि गुरु शंकराचार्य ने ब्राह्मण समाज के लोगों में से धर्म की हानि रोकने के लिये एक नये सम्प्रदाय की शुरुआत की जिन्हे गोस्वामी / गोसाईं कहा गया। कुल दस भागों में इन्हे विभाजित किया गया अर्थात इसमें दश तरह की उपजातिया होती है जिनमे गिरी, पुरी, भारती, अरण्य, वन, पर्वत, सागर, तीर्थ, आश्रम, एवं सरस्वती शामिल है इस शीर्षक का उपयोग करने वाले विभिन्न जातियों के बहुत से लोग हैं। इस शीर्षक का मतलब गौ अर्थात पांचो इन्द्रयाँ, स्वामी अर्थात नियंत्रण रखने वाला। इस प्रकार गोस्वामी का अर्थ पांचो इन्द्रयों को वस में रखने वाला होता हैं। लेकिन बोलचाल की भाषा में गोस्वामी का अर्थ गौरक्षक से भी समझा जाता है। भारतीय उपजाति "गोस्वामी" के समूह से बना यह समाज सम्पूर्ण भारत में फैला है सर्वाधिक गोस्वामी समाज के लोग राजस्थान,गुजरात,उत्तराखंड,उड़ीसा,पश्चिम बंगाल एवम बिहार में रहते है ये शिव के उपासक होते है। दिन रात शिव की पुजा करते हैं जिसे लोग इन पुजारी को ब्राह्मण समझा जाता है। लेकिन तकनीकी रूप से गोसाईं ब्राह्मणों से अधिक श्रेष्ठ होते हैं। ये सम्प्रदाय के साधु प्रायः गेरुआ (भगवा रंग)वस्त्र पहनते, एक भुजवाली लाठी रखते और गले में चौवन, रुद्राक्षों की माला पहनते हैं। इनमें कुछ लोग ललाट पर चंदन या राख से तीन क्षैतिज रेखाएं बना लेते। तीन रेखाएं शिव के त्रिशूल का प्रतीक होती है, दो रेखाओं के साथ एक बिन्दी ऊपर या नीचे बनाते, जो शिवलिंग का प्रतीक होती है। दसनामी संत 'ॐ नमो नारायण' या 'नम: शिवाय' से शिव की आराधना करते हैं। इनकी मुख्य काम हिन्दू धर्म का प्रचार प्रसार करना है और गोस्वामी समाज से जुडी कुछ खास बातें जिनमे वे कभी अपने धर्म से विचलित नहीं हुए हैं अर्थात कभी दुसरे धर्म नहीं अपनाए हैं। सभी जाति एवं समुदाय के लोग हाथ जोड़कर नमस्कार करते हैं। कथित रूप से इन्हें बाबाजी, महाराज, गुसाई, स्वामी आदि नामों से पुकारा जाता है ।