रीतिमुक्त कवि

रीतिमुक्त कवि वे हैं जिन्होंने न तो लक्षण ग्रंथों की रचना की न ही लक्षण ग्रंथों की रीति से बँधकर अपनी रचनाएँ कीं। इस प्राकर रीतिकालीन कविता के दौर में भी ये लोग परंपरागत शैली से हट कर स्वच्छंद रूप से रचना करते रहे।[1]

रीतिकाल में एक ओर तो रीति का अनुपालन करने वाले कवि थे जो लक्षणों के अनुसार नख-शिख वर्णन में लगे हुए थे वहीं इसके विपरीत रीतिमुक्त कवियों ने संस्कृत साहित्य से सुन्दरी के लक्षण न लेकर प्रेम और श्रृंगार की की अभिव्यक्ति के लौकिक रूप को महत्व दिया जो भारतीय पद्धति में एक नई चीज के रूप में देखा जा सकता है।[2]

प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ

आलम

आलम इस धारा के प्रमुख कवि हैं। इनकी रचना "आलम केलि" है।

घनानंद

रीतिमुक्त कवियों में सबसे अधिक प्रसिद्द कवि हैं। इनकी रचनाएँ हैं - कृपाकंद निबन्ध, सुजान हित प्रबन्ध, इश्कलता, प्रीती पावस, पदावली।

बोधा

विरह बारिश, इश्कनामा।

ठाकुर

ठाकुर ठसक, ठाकुर शतक।

द्विजदेवएक अन्य कवि हैं जो रीति मुक्त कवियों की श्रेणी में गिने जाते हैं।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. मिश्र, रामदरश. काव्य गौरव. नई दिल्ली: वाणी प्रकाशन. पृ॰ 15. अभिगमन तिथि 19 जून 2015.
  2. वत्स, राकेश. प्रेम पथिक परमपरा में चन्द्रकुँवर बर्तवाल की 'मेघनन्दिनी'. वाणी प्रकाशन.
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