हसन खां मेवाती

हसन खां मेवाती (मृत्यु: 17 मार्च, 1527) मेवात के मुस्लिम खानजादा राजपूत शासक थे। इनके खानदान ने मेवात पर 200 साल राज किया।


 बहादुर नहार द्वार 1353 ईसवीं में स्थापित मेवात राज्य का वह सातवां शासक था। अलवर उनके राज्य की राजधानी थी। अलवर के उत्तर-पश्चिम अरावली पर्वत श्रंखला की एक चोटी पर हसन खां ने एक मजबूत किले का निर्माण कराया था। इस किले की बुलंदी तकरीबन एक हजार फीट है, इसकी लम्बाई तीन मील और चौडाई एक मील है। उनके किले मे 15 बडी और 52 छोटी बुर्जियां है। इस किले पर करीब तीन हजार पांच सौं कंगूरे हैं। यह किला बाला किला के नाम से मशहूर है।

   फिरोज तुगलक के समय में बहुत से राजपूत खानदानों ने इस्लाम धर्म कबूल किया था,उनमें सरहेटा राजस्थान के 'राजकुमार समरपाल' थे। समरपाल की पांचवीं पीढी में सन् 1492 में हसनखां के पिता 'अलावल खां' मेवात के राजा बने। इसलिये हसन खां ‘जादू गौत्र’ से ताल्लुक रखते हैं और मुस्लिम धर्म अपनाने के बाद खान जादू एवं खानजादा कहलाए। हसन खां सन् 1505 में मेवात के राजा बनें। सन् 1526 ईसवीं में जब मुगलबादशाह बाबर ने हिंदुस्तान पर हमला किया तो इंब्राहीम लोदी, हसन खां मेवाती व दिगर राजाओं ने मिलकर पानीपत के मुकाम पर बाबर से हुऐ मुकाबले में राजा हसन खां के पिता अलावल खां शहीद हो गए।  

  पानीपत की विजय के बाद बाबर ने दिल्ली  और आगरा पर तो अपना अधिकार जरूर कर लिया लेकिन भारत सम्राट बनने के लिये उसे महाराणा संग्राम सिंह (मेवाड) और हसन खां (मेवात) बाबर के लिये कडी चुनौती के रूप में सामने खडे थे। बाबर ने हसन खां मेवाती को अपने साथ मिलाने के लिये उन्हें इस्लाम का वास्ता दिया तथा एक लडाई में बंधक बनाये गये राजा हसन खा के  पुत्र को बिना शर्त छोड दिया, लेकिन राजा हसन खां की देश भक्ति के सामने धर्म का वास्ता काम नहीं आया।           

15 मार्च 1527 को राजा हसन खां ने राणां सांगा के साथ मिलकर 'खानवा' के मैदान में बाबर की सैना दोनो जमकर लडे अचानक एक तीर राणा सांगा के सिर पर आ लगा और वह हाथी के ओहदे से नीचे गिर पडे जिसके बाद सैना के पैर उखडने लगे तो सेनापति का झण्डा खुद राजा हसन खां मेवाती ने संभाल लिया और बाबर सैना को ललकारते हुऐ उनपर जोरदार हमला बोल दिया। राजा हसन खां मेवाती के 12 हजार घुडसवार सिपाही बाबर की सैना पर टूट पडे इसी दौरान एक तोप का गोला राजा हसन खां मेवाती के सीने पर आ लगा और इसके बाद आखरी मेवाती राजा का हमेशा के लिये 15 मार्च 1527 को अंत हो गया।

   शहीद राजा हसन खां के मृत शरीर को उसके पुत्र ताहिर खां, नजदीकी रिश्तेदार जमालखां और फतेहजंग लेकर आये, उसके बाद राजा हसन खां के पार्थिक शरीर को अलवर शहर के उत्तर में सुपुर्द-ए-खाक किया गया। यहां पर राजा हसनखां के नाम पर एक यादगार छतरी बनाई गई थी। लेकिन देश के सबसे बुरे दौर 1947 में उपद्रवियों ने इस महान स्तंत्रता सेनानी राजा हसनखां की यादगार छतरी को भी नष्ट कर दिया।
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